1 00:00:07,006 --> 00:00:12,679 दरअसल, वह बहुत ही विरला और अनूठा अमानुष होगा 2 00:00:12,762 --> 00:00:17,100 जो अपने आश्रय घरों को छोड़ने का फ़ैसला लेगा। 3 00:00:20,353 --> 00:00:25,525 विभाजन के बाद के कुछ सालों में, लंबे निर्वासन के दौरान, 4 00:00:25,609 --> 00:00:29,821 हम अमानुष अपने आश्रय स्थलों की तलाश में दर-ब-दर भटकते रहे। 5 00:00:32,908 --> 00:00:38,079 वही दौर था जब अमानुष घर वापस जाने के लिए इतना तड़पने लगे... 6 00:00:38,872 --> 00:00:41,250 कि वे और जी नहीं पाए। 7 00:00:43,710 --> 00:00:47,465 दोबारा अपना आश्रय स्थान पाने के बाद भी, 8 00:00:47,548 --> 00:00:51,594 हम अमानुष अपने घरों में ही सीमित रहे हैं। 9 00:01:00,268 --> 00:01:05,441 एक अमानुष के उपवन से प्यारी कोई जगह है ही नहीं। 10 00:01:08,027 --> 00:01:10,153 उसके कुछ विशाल वृक्ष तो 11 00:01:10,236 --> 00:01:14,700 दिग्गजों के युग से अपने विराट रूप में खड़े हैं। 12 00:01:17,912 --> 00:01:21,039 निशाचर का कोई भी जीव उनमें प्रवेश नहीं कर सकता। 13 00:01:21,123 --> 00:01:25,210 एक शक्ति को संचालित करने का कोई तरीका नहीं है। 14 00:01:25,585 --> 00:01:28,923 आश्रय स्थल में, केवल विश्राम है। 15 00:01:31,424 --> 00:01:35,638 जबकि मानवता ने लंबे समय से अमानुष के भवन निर्माण की अहमियत समझी है, 16 00:01:35,721 --> 00:01:40,141 इलियन से लेकर टियर और महान टार वैलॉन तक, 17 00:01:40,225 --> 00:01:42,353 यह असली अहम चीज़ नहीं है। 18 00:01:44,146 --> 00:01:47,817 हमारे लिए हमेशा से जंगल ही अहम रहा है। 19 00:01:49,819 --> 00:01:52,862 आप पत्थरों में जान नहीं डाल सकते। 20 00:02:05,876 --> 00:02:08,169 जब हम जंगल के लिए गीत गाते हैं, 21 00:02:08,253 --> 00:02:12,967 तो पृथ्वी स्वयं हमें अपना संगीत सुनाती है। 22 00:02:15,844 --> 00:02:18,222 जब मैं एक युवा अमानुष था, 23 00:02:18,305 --> 00:02:21,975 मेरे पास चंद ही कीमती चीज़ें थीं, 24 00:02:22,058 --> 00:02:25,478 जिनमें से ज़्यादातर मेरी किताबें ही थीं। 25 00:02:27,272 --> 00:02:32,569 और जबकि आश्रय स्थल में घर में रहने से बेहतर कुछ नहीं है, 26 00:02:32,652 --> 00:02:36,781 जहाँ हम अपने प्यारे उपवनों को देखकर सुविधाओं के बीच 27 00:02:37,031 --> 00:02:40,536 बुद्धि और शांति पाते हैं... 28 00:02:42,829 --> 00:02:46,500 फिर भी असली रोमांच हमें पुकारता है। 29 00:02:46,584 --> 00:02:51,881 ऐसा रोमांच जो किसी किताब में नहीं मिल सकता। 30 00:02:51,963 --> 00:02:56,801 ऐसा रोमांच जो दरअसल घर से दूरी की तड़प सहने का जोख़िम उठाने का हौसला देता है। 31 00:03:07,562 --> 00:03:10,941 द व्हील ऑफ़ टाइम ऑरिजिंस